बुधवार 17 दिसंबर 2025 - 13:49
महदवीयत तहरीफ के ख़तरे से दो चार है। आयतुल्लाह नज्मुद्दीन तबसी

हौज़ा / जामिया ए मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सदस्य ने महदवियत की अवधारणा को गंभीर ख़तरों से आगाह करते हुए कहा है कि आज महदवियत न केवल असाधारण ध्यान का केंद्र बनी हुई है, बल्कि तहरीफ़ के गंभीर ख़तरे में भी है। यदि इस विषय की वैज्ञानिक और गंभीर व्याख्या से ग़फ़लत बरती गई, तो इसके अपूरणीय परिणाम सामने आ सकते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , जामिया ए मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सदस्य ने महदवियत की अवधारणा को गंभीर ख़तरों से आगाह करते हुए कहा है कि आज महदवियत न केवल असाधारण ध्यान का केंद्र बनी हुई है, बल्कि तहरीफ़ के गंभीर ख़तरे में भी है। यदि इस विषय की वैज्ञानिक और गंभीर व्याख्या से ग़फ़लत बरती गई, तो इसके अपूरणीय परिणाम सामने आ सकते हैं।

आयतुल्लाह तबसी ने मस्जिद ए जमकरान में ‘यौम-ए-तहक़ीक़’ के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इमाम ज़माना अ.स. का मुक़ाम और महदवियत की वास्तविकता शिया अक़ीदों की बुनियाद है, लेकिन आज शत्रु शक्तियाँ संगठित योजना और मज़बूत ढाँचों के साथ इस सत्य को कमज़ोर करने में लगी हुई हैं।

उन्होंने मरहूम मीर हामिद हुसैन लखनवी के कथनों का हवाला देते हुए कहा कि लगभग 180 वर्ष पहले ही महान उलेमा ने चेतावनी दे दी थी कि असत्य शक्तियाँ आपसी समन्वय के साथ सत्य के विरुद्ध सक्रिय होंगी। आज यह वास्तविकता पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है कि विभिन्न गुमराह विचारधाराएँ और विरोधी, संगठित संस्थानों और मंचों के माध्यम से सत्य के खंडन में जुटे हुए हैं।

आयतुल्लाह मुरव्विज तबसी ने कहा कि उलेमा ने बड़ी कठिनाइयों के बाद जो अमूल्य वैज्ञानिक धरोहर उम्मत के लिए छोड़ी, वह आज सहज रूप से हमारे हाथों में है। लेकिन यदि इस नेमत की क़द्र न की गई, तो क़ीमती उम्र के व्यर्थ जाने और दीन की पहचान के कमज़ोर पड़ने का ख़तरा है। यह दुनिया एक अस्थायी पड़ाव है, और इसमें राह-ए-हक़ तथा अहले-बैत अलैहिमुस्सलाम के नाम को ज़ाया नहीं करना चाहिए।

उन्होंने वैचारिक आक्रमण के मुक़ाबले में जागरूकता की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि महदवियत मित्र और शत्रु दोनों की ध्यान-केंद्र है; शत्रु इसलिए कि वे जानते हैं एक मुंजी आएगा जो अत्याचार का अंत करेगा, और अहले-ईमान इसलिए कि वे वादा-ए-इलाही की पूर्ति के प्रतीक्षारत हैं।

हौज़ा-ए-इल्मिया क़ुम के इस उस्ताद ने अफ़्रीका और यूरोप की अपनी तबलीगी और शैक्षणिक यात्राओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने स्वयं देखा है कि दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में विचारशील लोग, अध्ययनशील वर्ग और सत्य के खोजी महदवियत के विषय को गंभीरता से ले रहे हैं और उस पर गहरी रुचि दिखा रहे हैं।

उन्होंने सूडान की यात्रा का एक प्रसंग बयान करते हुए कहा कि लगभग 300 लोगों की एक बैठक में जिसमें ईसाई, सलफ़ी और अहले-सुन्नत सहित विभिन्न वैचारिक वर्ग शामिल थे घंटों प्रश्न और शंकाएँ चर्चा में रहीं, और अंततः महदवियत से संबंधित सही व्याख्या को प्रतिभागियों ने खुले दिल से स्वीकार किया।

आयतुल्लाह मुरव्विज तबसी ने आगे बताया कि पिछले सप्ताह मॉस्को में भी ऐसे छात्र जो पहले क़ुम में शिक्षा प्राप्त कर चुके थे हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर महदवियत के दर्सों में शामिल हुए और इस विषय पर विशेषज्ञ पुस्तकों के अनुवाद तथा सामग्री की मांग की। यह इस बात का संकेत है कि महदवियत की ओर वैश्विक स्तर पर रुचि बढ़ रही है।

उन्होंने अतीत के उलेमा की कठिनाइयों को याद करते हुए कहा कि एक समय था जब अल्लामा अमीनी (रहमतुल्लाह अलैह) जैसे महान विद्वानों को अपनी पुस्तकों के प्रकाशन के लिए भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, जबकि आज संसाधन उपलब्ध हैं। इसलिए इस ऐतिहासिक अवसर को व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

अंत में, जामिया ए मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सदस्य ने ज़ोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि उपलब्ध सभी क्षमताओं को काम में लाकर मआरेफ़-ए-महदवी की सही और श्रेष्ठ तबीइन व तशरीह की जाए; क्योंकि यदि आज कोताही हुई, तो कल बहुत देर हो चुकी होगी।

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